- Hindi News
- स्पेशल खबरें
- "गवाह बदलते रहे, सबूत रह गए अधूरे... मालेगांव धमाके में छूट गए सारे कसूरवार पूरे"
"गवाह बदलते रहे, सबूत रह गए अधूरे... मालेगांव धमाके में छूट गए सारे कसूरवार पूरे"

नेशनल डेस्क । मुंबई। मालेगांव बम धमाका मामले में 17 साल बाद बड़ा फैसला सामने आया है। विशेष एनआईए अदालत ने सभी सात आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। धमाके में 37 लोगों की जान गई थी और 100 से अधिक घायल हुए थे। इस केस में 1,000 से ज्यादा सुनवाइयां हुईं, लेकिन सबूतों की कमी के चलते अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध नहीं कर पाया। पीड़ित परिवारों ने फैसले पर निराशा जताई है।
---
🔸 17 साल बाद आया फैसला, आरोपी संदेह के लाभ में बरी
विशेष एनआईए अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को प्रमाणित करने में असफल रहा। सबूतों की कमी और गवाहों के पलटने के चलते सभी सात आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।
---
🔸 धमाके में गई थीं 37 जानें, 100 से अधिक घायल
8 सितंबर 2006 को महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में जुमे की नमाज़ के तुरंत बाद सिलसिलेवार धमाके हुए थे। इन धमाकों में 37 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 100 से अधिक घायल हो गए थे। धमाके ने पूरे देश को दहला दिया था।
---
🔸 हज़ार से ज्यादा सुनवाइयों के बाद भी नहीं मिला न्याय
मामले में एक हज़ार से अधिक बार सुनवाई हुई। अदालत में पेश किए गए कई गवाह अपने पहले दिए बयानों से मुकर गए। समय के साथ कुछ गवाहों की मौत हो गई और सबूत भी कमजोर पड़ते गए। इन हालात में अदालत ने आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया।
---
🔸 जांच की दिशा में हुआ बदलाव
मामले की शुरुआत में महाराष्ट्र एटीएस ने कुछ मुस्लिम युवकों को आरोपी बनाया था। लेकिन 2011 में जब एनआईए ने जांच अपने हाथ में ली, तो मामला कथित 'हिंदुत्व आतंकवाद' की ओर मुड़ गया और सात अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया।
---
🔸 पीड़ितों की निराशा, बचाव पक्ष की राहत
फैसले के बाद पीड़ित परिवारों ने गहरा दुःख जताया और कहा कि उन्हें न्याय नहीं मिला। उनका कहना था कि 17 साल की लड़ाई के बाद उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। वहीं, बचाव पक्ष के वकीलों और आरोपियों ने अदालत के फैसले को 'न्याय की जीत' बताया।
---
🔸 न्याय प्रणाली पर खड़े हुए सवाल
इस फैसले ने देश की जांच प्रणाली, गवाह सुरक्षा और न्याय प्रक्रिया की गति पर एक बार फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। पीड़ितों का कहना है कि अगर इतने साल बाद भी दोषी साबित नहीं हो सके, तो दोष किसका है?