भोरणी/डुमनी वाला, भारत – भारत‑पाक सीमा से सटी एक अत्यंत संवेदनशील रक्षा भूमि को फर्जी दस्तावेज़ों और राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी के ज़रिए अवैध रूप से निजी व्यक्तियों को बेच दिया गया। सेना की सतर्कता, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के दख़ल और विजिलेंस ब्यूरो की जांच से यह गंभीर मामला सामने आया।
🛑 क्या है मामला?
फिरोज़पुर और उसके आस-पास के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित “जहाज़ ग्राउंड” जैसी भूमि, जो कि रक्षा और आपातकालीन उपयोग के लिए आरक्षित थी, उसे जाली कागज़ात बनाकर बेचा गया। यह ज़मीन करीब 15 एकड़ की थी और कथित रूप से 1997 से ही अवैध रूप से हड़पी गई थी।
⚠️ डुमनी वाला गांव का मामला भी आया सामने
विजिलेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, फिरोज़पुर के डुमनी वाला गांव की एक महिला और उसके बेटे ने राजस्व विभाग के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से 1997 में ज़मीन अपने नाम करवाई। इसके बाद इस ज़मीन को एक अन्य व्यक्ति को बेच दिया गया।
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यह मामला तब सामने आया जब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने विजिलेंस जांच का आदेश दिया।
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जांच में यह पाया गया कि मूल भूमि रिकॉर्ड में हेरफेर, फर्जी जमाबंदी, और कागज़ातों में ग़लत जानकारी देकर जमीन बेची गई।
🕵️ कैसे हुआ पर्दाफाश?
2024 में सेना के कर्नल अनुज अंतल को ज़मीन की फाइलों और क्षेत्रीय हलचल में संदेह हुआ। जब उन्होंने दस्तावेजों का मिलान किया तो कई विसंगतियाँ सामने आईं। इसकी जानकारी उच्च अधिकारियों को दी गई और यहीं से जांच का सिलसिला शुरू हुआ।
📋 अब तक की कार्रवाई:
संस्था | कार्रवाई |
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भारतीय सेना | रक्षा भूमि की पहचान और संरक्षा की समीक्षा, रिपोर्ट दर्ज |
विजिलेंस ब्यूरो | डुमनी वाला गांव की ज़मीन घोटाले की जांच और रिपोर्ट |
हाई कोर्ट | जांच का आदेश, रिपोर्ट पर निगरानी |
CBI (सिफ़ारिश की गई) | पूरे प्रकरण की विस्तृत जांच के लिए अनुशंसा |
🔍 बड़ा सवाल: इतनी बड़ी गड़बड़ी कैसे छिपी रही?
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1997 से लेकर 2024 तक ज़मीन का स्वामित्व कई हाथों से गुज़रा।
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राजस्व रिकॉर्ड की गड़बड़ी जानबूझकर छुपाई गई।
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कोई भी विभाग ज़मीन के वास्तविक स्वामित्व की पुष्टि करने में विफल रहा, या अनदेखी करता रहा।