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श्राद्ध: मृतकों की स्मृति से जीवितों के प्रति प्रेम तक – प्रायश्चित और नई चेतना का अवसर

इन दिनों श्राद्ध का पावन समय चल रहा है। जैसे ही श्राद्ध पूरे होंगे, नवरात्रे का पर्व आरंभ हो जाएगा। नवरात्रे यानी माँ जगत-जननी – वह शक्ति जो हर जन्म और हर जीवन की मूल स्रोत है।
श्राद्ध उन आत्माओं को याद करने का समय है जिनका कभी हमारे जीवन से संबंध रहा, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। यानी श्राद्ध मृत से जुड़ा है, जबकि नवरात्रे उस शक्ति का उत्सव है जो नए जीवन और जन्म देने वाली है।
श्राद्ध का अर्थ केवल कर्मकांड नहीं
अक्सर लोग श्राद्ध को एक नियम या कर्मकांड की तरह निभाते हैं। फूल, जल या भोजन चढ़ाकर सोच लेते हैं कि उन्होंने अपने पूर्वजों का सम्मान कर दिया। लेकिन श्राद्ध का वास्तविक अर्थ अपने भीतर श्रद्धा और प्रेम जगाना है। यह वह समय है जब हमें अपने व्यवहार पर विचार करना चाहिए कि हमने जीते-जी अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या किसी प्रियजन की कितनी कद्र की।
प्रायश्चित का दिन
श्राद्ध केवल मृतकों की आत्मा की शांति के लिए नहीं, बल्कि हमारे लिए प्रायश्चित का अवसर भी है। यह वह दिन है जब हम स्वीकार करें कि हमने अपने प्रियजनों के साथ रहते हुए उनकी भावनाओं, जरूरतों और सम्मान को कितना नज़रअंदाज़ किया। इस दिन उन्हें याद करके, आंखों में आंसू लाकर, अपने गलतियों के लिए सच्चे मन से प्रायश्चित करें।
जीवितों के प्रति नई चेतना
यदि श्राद्ध में सच्ची श्रद्धा और प्रायश्चित हो जाए, तो यह हमारी सोच को बदल देता है। हम यह संकल्प ले सकते हैं कि जो गलती हमने बीते समय में की, वह अब नहीं दोहराएँगे। जो आज हमारे साथ हैं, उनके प्रति प्रेम, सम्मान और संवेदनशीलता बढ़ाएँगे।
नवरात्र की ओर पहला कदम
जब हम ऐसा करते हैं, तो नवरात्रे का वास्तविक अर्थ – ‘नई रात्रि’, ‘नया जीवन’ – हमारे भीतर उतरता है। माँ जगत-जननी की शक्ति और करुणा हमारे भीतर जागृत होती है। यह कोई एक दिन का काम नहीं है; श्रद्धा, प्रेम और प्रायश्चित को हम हर दिन अपने जीवन में उतार सकते हैं।
श्राद्ध का पर्व हमें यह संदेश देता है कि मृतकों को श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ हमें जीवितों के प्रति भी प्रेम, सम्मान और संवेदनशीलता को अपनाना चाहिए। यही हमारे जीवन को सच्चे अर्थों में सफल और प्रकाशमय बना सकता है।
लेखक - मास्टर जी