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“ब्रज की आत्मा पर चोट” — बांके बिहारी मंदिर कोरिडोर पर आचार्यों का आक्रोश, सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई जारी

वृंदावन। विशेष रिपोर्ट।
वृन्दावन के हृदय में बसा श्री बांके बिहारी मंदिर, जिसकी गलियों में हर कदम पर भक्ति की खुशबू और शताब्दियों पुरानी परंपराओं की गूंज सुनाई देती है, आज एक बड़े संकट से गुजर रहा है। सरकार की प्रस्तावित कोरिडोर परियोजना को ब्रजवासी अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान पर सीधी चोट मान रहे हैं।
इतिहासकार आचार्य प्रहलादबल्लभ गोस्वामी का दर्द छलक पड़ा— “वृन्दावन का महत्व सृष्टि पूर्व से है, लेकिन यहां हमेशा भेदभाव हुआ। कुंभ जैसे पर्व कभी यहां स्थापित नहीं हुए, शासन ने कई बार ब्रज संस्कृति को कमजोर किया, और आजादी के 80 साल बाद भी यहां बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। अब कोरिडोर और मंदिर न्यास के नाम पर भोले-भाले ब्रजवासियों को उनके आराध्य से दूर किया जा रहा है।”
श्री बांके बिहारी मंदिर के मुख्य सेवाधिकारी आचार्य अनंत गोस्वामी ने सवाल उठाया— “जब उचित व्यवस्था बनाकर बृज संस्कृति को बचाया जा सकता है, तो सरकार कोरिडोर की जिद क्यों कर रही है? यह परियोजना धोखा है, जो ब्रज की आत्मा को आहत करेगी।” उन्होंने भीड़ प्रबंधन और दर्शन सुविधा के लिए आधुनिक लेकिन परंपरानुकूल सुधारों की वकालत की और सभी ब्रजवासियों से एकजुट होकर अपनी धरोहर बचाने की अपील की।
आचार्य योगेंद्र बल्लभ गोस्वामी (सेवायत, श्रीराधा बल्लभ मंदिर) ने भी चेताया— “सेवायत परंपरा में सरकारी दखल उचित नहीं है। नौकरशाही से नियुक्त पुजारी कभी सेवा योग्य नहीं होंगे। यह आदेश ब्रजवासियों के अधिकारों पर कुठाराघात है।”
कोरिडोर परियोजना के खिलाफ सेवायत समाज और स्थानीय संगठन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह योजना सैकड़ों साल पुराने मंदिरों, गलियों और धरोहरों को प्रभावित करेगी, और हजारों परिवारों को उजाड़ देगी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई तय की है।