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भिक्षा नहीं शिक्षा चाहिए: पंजाब का बच्चा बचाओ मॉडल देशभर में लागू हो - — लक्ष्मीकांता चावला

अमृतसर। पंजाब
पंजाब सरकार द्वारा हाल ही में चलाया गया बाल भिक्षावृत्ति उन्मूलन और पुनर्वास अभियान पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकता है। इस अभियान के अंतर्गत सड़कों, चौराहों और सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगते बच्चों को न केवल बचाया गया, बल्कि उनमें से अधिकांश को उनके परिवारों से भी मिलवाया गया।
पिछले कुछ वर्षों से लगातार यह मांग उठती रही है कि भारत सरकार और राज्य सरकारें मिलकर एक ऐसा व्यापक अभियान चलाएं, जो देश में लापता हुए लाखों बच्चों की खोज में मदद करे। यही बच्चे अक्सर भिखारियों के साथ या उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। बच्चों को भीख मंगवाना एक संगठित अपराध है और इसमें मासूमों का बचपन, शिक्षा और भविष्य सब कुछ छिन जाता है।
पंजाब सरकार ने एक प्रभावी पहल करते हुए 367 बच्चों को रेस्क्यू किया, जिनमें से 350 को उनके माता-पिता को सौंप दिया गया। यह एक बड़ा कदम है, लेकिन इससे कई सवाल भी उठते हैं—क्या यह माता-पिता वही हैं जिनके बच्चे कभी लापता हुए थे? क्या बच्चों की पहचान की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रही? क्या ये वही लोग तो नहीं जो बच्चों से जबरन भीख मंगवा रहे थे?
इस अभियान की सफलता तभी पूरी मानी जाएगी जब:
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सभी बच्चों की सही पहचान डीएनए जांच जैसे वैज्ञानिक तरीकों से हो,
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उन्हें शिक्षा, सुरक्षा और पुनर्वास की उचित व्यवस्था दी जाए,
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और उन लोगों पर कड़ी कार्रवाई हो जो बच्चों का शोषण करते हैं।
भारत सरकार को चाहिए कि वह पंजाब मॉडल से प्रेरणा लेकर पूरे देश में ऐसा अभियान चलाए। देश के हर राज्य, हर शहर और गांव में सड़कों पर भीख मांगते बच्चों के पीछे एक करुण कहानी छुपी होती है। यह जरूरी है कि उन्हें स्कूल का रास्ता दिखाया जाए, न कि सड़क का।
यह वक्त है कि हम सब मिलकर कहें —
“बचपन को भीख नहीं, किताबें चाहिए। फुटपाथ नहीं, स्कूल चाहिए।”
पंजाब सरकार को इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई, और केंद्र सरकार से अपील है कि इस नेक काम को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया जाए। यह सिर्फ सामाजिक न्याय नहीं, बल्कि इंसानियत की सबसे बड़ी सेवा होगी।