संजय गांधी की मौत के बाद इंदिरा उनकी जेब में क्या ढूंढ रही थीं ?

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नई दिल्ली। नेटवर्क न्यूज़। संजय गांधी जितना अपने अक्खड़ और तुनकमिजाजी वाले स्वभाव के लिए चर्चित थे, उससे कहीं ज्यादा उन्हें मशीनों से लगाव था। खासकर कारों और हवाई जहाज से। संजय को साल 1976 में हल्के विमान उड़ाने का लाइसेंस मिला, लेकिन जब इंदिरा गांधी की कुर्सी छिनी तो जनता पार्टी की सरकार ने उनका लाइसेंस भी छीन लिया। लेकिन इंदिरा के सत्ता में लौटते ही उनका लाइसेंस दोबारा बहाल हो गया।

— संजय गांधी से जनता पार्टी की सरकार ने उनका विमान उड़ाने का लाइसेंस भी छीन लिया था

संजय गांधी अपना काफी वक्त सफदरजंग फ्लाइंग क्लब में बिताते थे। वह विमान उड़ाने को लेकर इतने उतावले रहते कि हर प्लेन पर हाथ आजमाना चाहते थे। उन्हें हवा में गोते खाना और फाइटर प्लेन की तरह कलाबाजी दिखाना बेहद पसंद था। मई 1980 में सफदरजंग फ्लाइंग क्लब में पिट्स एस 2ए विमान आयात कर मंगवाया गया। इस विमान को कई सालों से लाने की कवायद चल रही थी।

संजय गांधी की इस विमान में खास दिलचस्पी थी। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक विनोद मेहता अपनी किताब ”द संजय स्टोरी” में लिखते हैं कि इस टू सीटर विमान को खासतौर से हवा में कलाबाजी के लिए ही डिजाइन किया गया था और यही वजह थी कि संजय गांधी इसे उड़ाने के लिए बेसब्र थे।

चंद मिनट बाद प्लेन हो गया क्रैश: 23 जून 1980 को संजय गांधी तड़के ही फ्लाइंग क्लब पहुंच गए। उनके साथ विमान में दिल्ली फ्लाइंग क्लब के पूर्व इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना भी थे। उन्होंने उड़ान भरी। क्लब के ऊपर ही कलाबाजी करने। 3 चक्कर काटने के बाद ही विमान के इंजन ने काम करना बंद कर दिया। दोनों जब तक कुछ समझ पाते तब तक विमान क्रैश हो गया।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका तवलीन सिंह अपनी किताब ”दरबार” में लिखती हैं कि 23 जून 1980 की उस सुबह जिसने भी संजय गांधी के विमान को प्रत्यक्ष तौर पर क्रैश होते देखा था उन सबका कहना था कि वह बेहद खतरनाक तरीके से विमान उड़ा रहे थे और काफी नीचे थे। दुर्घटना सफदरजंग क्लब से थोड़ी ही दूरी पर हुई थी।

जेब में क्या तलाश रही थीं इंदिरा? तवलीन सिंह अपनी किताब में आगे लिखती हैं, ‘जो रिपोर्टर घटनास्थल पर पहुंचे थे उन्होंने तमाम कहानी सुनाई। संवाददाताओं के मुताबिक संजय की मां इंदिरा गांधी दुर्घटना के चंद मिनट बाद ही वहां पहुंच गई थीं। वह कथित तौर पर संजय गांधी की जेब में कुछ तलाश रही थीं और बाद में वापस लौट गईं।’ इसी बीच दिल्ली के सियासी गलियारों में यह गॉसिप तैरने लगा कि प्रधानमंत्री गांधी संजय की जेब में एक बैंक लॉकर की चाबी ढूंढ रही थीं।

ऐसी अफवाह भी उड़ी की संजय की मौत के पीछे किसी विदेशी खुफिया एजेंसी का हाथ है। क्योंकि इंदिरा गांधी सोवियत यूनियन की करीबी मानी जाती थीं। एक दूसरी अफवाह भी उड़ी कि संजय गांधी के प्लेन क्रैश के पीछे मुंबई के अंडरवर्ल्ड और गैंगस्टर का हाथ है। हालांकि इनकी पुष्टि नहीं हुई।

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