मृत्यु भोज की प्रथा को खत्म करने हेतु समाज के हर वर्ग का आगे आना जरुरीः डा. बग्गा

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होशियारपुर । जब भी किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद किए जाने वाले संस्कारों में रसम किरया वाले दिन मृत्यु भोज का आयोजन किया जाता है। हालांकि इस दिन भोजन की व्यवस्था दूर दराज से आने वाले रिश्तेदारों एवं जानकारों के लिए की जाती थी। परन्तु धीरे-धीरे इस प्रथा ने गलत रुप धारण करते हुए विवाह एवं उत्सवों जैसा रुप धारण कर लिया। जिसे रोकने के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आने की जरुरत है।

-कहा, मृत्यु भोज पर किया जाने वाला खर्च जरुरतमंदों की सेवा में लगाएं

क्योंकि, जिस परिवार का कोई सदस्य संसार से चला जाता है तो इस स्थिति में वह परिवार पहले ही दुखद अवस्था में होता है और इस समय में स्वादिष्ट पकवानों का स्वाद तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता। इसलिए सभी से अनुरोध है कि रसम किराय वाले दिन आयोजित किए जाने वाले मृत्यु भोज को न करके उस पर खर्च किया जाने वाला पैसा जरुरतमंदों की सेवा कार्य में लगाएं। यह आह्वान सामाजिक संस्था सवेरा के अध्यक्ष डा. अजय बग्गा ने श्री राम भवन में श्री राम चरित मानस प्रचार मंडल की तरफ से करवाए जा रहे श्री राम नवमीं महोत्सव के दौरान विशेष तौर से पहुंचकर उपस्थित श्रद्धालुओं से किया। इस मौके पर डा. अजय बग्गा ने कहा कि अकसर देखा गया है कि जो लोग समृद्ध एवं संपन्न हैं उनमें से अधिकतर के लिए परिवार में किसी का जाना भी किसी उत्सव से कम नहीं होता और लोक दिखावे के चलते उनके द्वारा मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कारों को बढ़ाचढ़ा किया जाता है तथा मृत्यु भोज पर किसी विवाह समारोह जैसी खर्च किया जाता है। जिसकी देखा देखी मध्यमवर्गीय एवं गरीब लोग भी मृत्यु भोज का दिखाने करने से पीछे नहीं रह रहे तथा इस चक्कर में कई लोग तो कर्जदार भी हो रहे हैं। इसलिए आज वक्त है कि हम सामाजिक सुधार की तरफ एक कदम और बढ़ाते हुए मृत्यु भोज की प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए पहल करें और दूसरों को भी इसके लिए समझाएं। उन्होंने अह्वान किया कि समाज में अगर कोई प्रथा बुराई का रुप धारण करने लगे तो उसे रोकना एवं उस प्रथा को बदलना भी हम सभी का कर्तव्य है और वे समझते हैं कि इस प्रथा को रोकने के लिए सभी सोचसमझकर पहल जरुर करेंगे।

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