कैसे जासूसी करता है Pegasus स्पाईवेयर, यूज़र का फोन कैसे होता है हैक…?

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नई दिल्ली: Pegasus स्पाईवेयर ने भारत में कुछ ही समय पहले एक नए विवाद को जन्म दिया था, जिसकी परिणति आज सुप्रीम कोर्ट के इस केस की जांच कराने के फैसले के साथ हुई है. केंद्र सरकार को झटका देते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने इस केस की जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर दिया है. दरअसल, कुछ वक्त पहले, मीडिया रिपोर्टों के हवाले से बताया गया था कि इस सॉफ्टवेयर की मदद से भारत में दर्जनों नेताओं, पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स के फोन में घुसकर जासूसी की गई है. विपक्ष इस पर हंगामा करता रहा, जबकि सरकार किसी भी ‘अनधिकृत इंटरसेप्शन’ से इंकार करती रही थी

बता दें कि पेगासस को इस्राइल स्थित साइबर इंटेलीजेंस और सुरक्षा फर्म NSO ग्रुप द्वारा विकसित किया गया था. माना जाता है कि यह स्पाइवेयर 2016 से ही मौजूद है और इसे क्यू सूट और ट्राइडेंट जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है. बाजार में उपलब्ध ऐसे सभी उत्पादों में यह सबसे परिष्कृत माना जाता है. यह एपल के मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम आईओएस और एंड्रॉइड डिवाइसों में घुस सकता है. पेगासस का इस्तेमाल सरकारों द्वारा लाइसेंस के आधार पर किया जाना था. मई 2019 में, इसके डेवलपर ने सरकारी खुफिया एजेंसियों और अन्य के लिए पेगासस की बिक्री सीमित कर दी थी.

NSO ग्रुप की वेबसाइट के होम पेज के अनुसार कंपनी ऐसी तकनीक बनाती है, जो दुनिया भर में हजारों लोगों की जान बचाने के लिए आतंकवाद और अपराध को रोकने और जांच करने में मदद के लिए ‘सरकारी एजेंसियों की मदद करती है.’

कैसे काम करता है पेगासस स्पाईवेयर

इस्राइल के NSO ग्रुप ने जो पेगासस स्पाईवेयर बनाया है, वह आईफ़ोन और एंड्रॉयड फोन में घुसपैठ करने में सक्षम होता है. हैकिंग में इस सॉफ्टवेयर ने WhatsApp में एक खामी का इस्तेमाल किया है. यह स्पाइवेयर किसी हानिकारक लिंक या मिस्ड WhatsApp वीडियो कॉल से एंट्री करता है. फिर यह फ़ोन के बैकग्राउंड में चुपचाप सक्रिय हो जाता है.

इस तरह इस स्पाईवेयर की फोन के कॉन्टैक्ट, मैसेज और बाकी डेटा तक पूरी पहुंच हो जाती है. यह सॉफ्टवेयर यूजर के फोन का माइक्रोफ़ोन और कैमरा भी खुद ऑन कर सकता है. WhatsApp ने अब अपनी यह खामी सुधार ली है.

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