23 साल पुराने कत्ल के मामले में बड़ा फैसला, आरोपितों को मामले से बरी किया

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नई दिल्ली। न्यूज़ डेस्क। देश के अलग-अलग हिस्सों में हर दिन कोई न कोई अपराध अंजाम दिया जाता है। जब मामला कोर्ट पहुंचता है तो वहां न्याय किया जाता है। कुछ ऐसा ही कोल्हापुर के एक हत्या के मामले में भी हुआ है। 23 साल पुराने हत्या के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो लोगों को बरी कर दिया है।

बॉम्बे हाईकोर्ट न्यायमूर्ति साधना जाधव और न्यायमूर्ति पीके चव्हाण की पीठ ने कोल्हापुर में एसटीडी बूथ के अंदर एक युवक की हत्या के आरोप में 23 साल पहले दो आरोपितों को मामले से बरी कर दिया। पीठ का यह फैसला हत्या के मामले में दोनों की दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा के 22 साल बाद आया है।

हाईकोर्ट ने कहा कि, यह मामला भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत “नॉट प्रूवेन” श्रेणी में आता है, ऐसे में आरोपियों को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। 1999 में घटना के वक्त एक आरोपी की उम्र 18 वर्ष ही थी इसलिए उसे कम उम्र के आधार पर जमानत दे दी गई थी। दोनों आरोपी रिश्ते में चाचा-भतीजे हैं, वहीं मामले में चश्मदीद गवाह पीड़ित के पिता थे।

इसके अलावा बचाव पक्ष ने मामले में मृतक की मां को बतौर गवाह पेश किया था। जिसमें मां ने बताया था कि उन्होंने बेटे को गंभीर रूप से घायल अवस्था में देखा था, जहां उसका शरीर खून से लथपथ था। हाई कोर्ट ने अपने 25 पन्ने के फैसले में कहा कि बचाव पक्ष के गवाहों व साक्ष्यों केवल इसलिए हल्के में लिया जा सकता कि वह इच्छुक गवाह होते हैं। वहीं मुदरंगी ने अभियोजन मामले में विभिन्न कमियों का हवाला देकर कहा था कि कोर्ट को अपराध स्थल भी देखना चाहिए।

ऐसे में हाई कोर्ट ने कहा था कि अदालतों का जोर हमेशा सबूत की गुणवत्ता पर होता है। वहीं अतिरिक्त लोक अभियोजक अरफान फैत ने मामले में प्रत्यक्ष साक्ष्य और चश्मदीद को लेकर बात उठाई थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि घटना के समय किशोर रहे आरोपी ने बहन के साथ छेड़छाड़ का विरोध कर रहे पीड़ित पर हमला किया था। जब पीड़ित के पिता घटनास्थल पर पहुंचे तो दोनों हमलवार भाग खड़े हुए थे।

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