ब्रह्मज्ञान के बाद व्यक्ति के जीवन से तंगदिली वाली भावनाएं समाप्त हो जाती हैं: माता सुदीक्षा जी

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    होशियारपुर, जनगाथा टाइम्स: (सिमरन)

    होशियारपुर : एक को जानो, एक को मानो तथा एक हो जाओ का संदेश देते हुए निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने भक्तों को संबोधित करते हुए अपने शब्दों में फरमाया कि हम सभी एक ही निरंकार प्रभु की संतान हैं। हम सभी का सांझा एक ही पिता हैं। एक ही ईश्वर की ज्योत आत्मा सभी में काम कर रही हैं। सभी एक ईश्वर से आते हैं और एक में विलीन हो जाते हैं। उच्च, नीच, जाति, बड़े और छोटे और इस तरह की तंगदिलीयां दुनिया में तब तक बनी रहती हैं। जब तक मनुष्य अपने मूल भगवान को नहीं जानता। जब सतगुरु की कृपा से इस निरंकार को जाना जाता हैं। तब मनुष्य के अंदर की सभी संकीर्ण भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं और मानव हृदय इस भगवान के सामान विशाल हो जाता हैं। तभी उनके जीवन में ईश्वरीय गुण, प्रेम, विनम्रता, सम्मान, दया, क्षमा आदि आते हैं। तभी सभी में ईश्वर का प्रकाश दिखाई देता हैं और घृणा, शत्रुता, घृणा और ईष्र्या की भावनाएँ गायब हो सकती हैं।

    उन्होंने कहा कि एक ईश्वर को मानने का अर्थ हैं, ईश्वर के मार्ग पर आगे बढ़ना, ईश्वर की रजा में रहना। जीवन में केवल एक भगवान को विशेषता देनी चाहिए। अंधविश्वासों, भ्रमों और बहम को छोड़ देना चाहिए और गुरुमत का मार्ग अपनाना चाहिए। एक बनने का अर्थ समझाते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर को जानने और मानने के बाद, हम ईश्वर के साथ एक हो जाएं, अर्थात हमें हमेशा इसके एहसास में रहना चाहिए। इस ईश्वर द्वारा बनाई गई दुनिया में परमात्मा को देखें। ईश्वर ने अपने कुदरत में अनेकों जीव, रंग भाषाएं व संस्कृतियां बनाई, हर एक में इस परमात्मा की होंद को देखना तथा स्वीकार करना तथा फिर सभी से प्यार करना ही एक होना हैं। सच्च भगत वह है जो इस ईश्वर को जानकर हर समय इस ईश्वर के अस्तित्व को देखता है और गुरमत का जीवन जीता हैं। केवल ऐसे भगत ही खुद का और दूसरों का कल्याण कर सकते हैं।

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