दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने किया धार्मिक समारोह का आयोजन

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    होशियारपुर (पवन ) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से स्थानीय आश्रम गौतम नगर होशियारपुर में धार्मिक कार्यक्रम करवाया गया। श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री रुक्मणि भारती ने ध्यान पर व्याख्यान दिया।उन्होंनें कहा कि गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि गोगोचर जहाँलगमनजाई,सोसबमायाजानोभाई अर्थात जहां-जहां हमारी इन्द्रियां जाती हैं और जिस-जिस दृश्य यापदार्थ कावे अनुभव करती हैं वह सब माया स्वरूप हैं,अनित्यहै।
    आगे उन्होंनें कहा कि गणित के खोजकर्ता आरकमिड़ीज कहते हैं कि मैं सम्पूर्ण सृष्टि को अंगुली पर उठा सकता हूँ अगर मुझे उस स्थिर बिंदु का पता चल जाए।उन्होने कहा कि आर कमिड़ीज की यह बात सार गर्भित है। जैसे एक चक्की तभी धूम पाती है,जब उसके केन्द्र में एक किल्ली लगी होती हैं। इसी प्रकार सकल चलायमान सृष्टि के केन्द्र में भी काई तो आधार भूत स्थिर बिन्दु होना चाहिए। आर कमिड़ीज का इशारा भी उसी परमबिंदु की ओर था। पर आरकमिड़ीज भी उस बिन्दु को बाहरी अस्थिर जगत में खोजते रहे इसलिए सदा असफल रहे।
    साध्वी जी ने कहा कि आज हमारी हालत भी आरकमिड़ीज जैसी है हम भी परमशान्ति पाने के लिए अलग-अलग ध्यान पद्तियां को अपना रहे हैं। लेकिन ये सारी ध्यान पद्तियां का प्रभाव जल पर खिंची रेखा की तरह क्षणिक होता है। इसी के बारे में तुलसीदास जी ने पहले कहा है कि अनित्य पदार्थो से कभी नित्य पदार्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती।श्वासों का नियंन्नण या शोधन ध्यान नहीं प्राणयाम कहलाता है अर्थात प्राण सबंधी व्यायाम अंत में उन्होंनें कहा कि उस स्थिर बिन्दुकोप्राप्त करने के लिए हमारे सभी शास्त्रो में बताया गया हैं। बाहरी नेत्रोंं को बन्द कर लेना ध्यान नहीं बल्कि दिव्य नेत्रों के खुल जाने से ध्यान की शुरूआत होती है। हमे भी ऐसे तत्वदर्शी महापुरूष की जरूरत है जो हमारे दिव्य नेत्रों को खोलकर ध्यान की सनातन पुरातन प्रक्रिया के बारे में बोध करवा दें। तभी हम ध्यान की सनातन पुरातन विधि को समझ पाएंगे। इस अवसर पर 5ाारी मात्रा में श्रद्धालूगण मौजूद थे।

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