Jangatha Times/
सवाल जो या तो आपको पता नहीं, या आप पूछने से झिझकते हैं, या जिन्हें आप पूछने लायक ही नहीं समझते
मानव जीवन के क्रमिक विकास का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक इसे मनुष्य के कबीलाई स्वभाव से जोड़कर देखते हैं. वे कहते हैं कि चोट लगने पर मुंह से आउच या आह की आवाज निकलते ही पीड़ित व्यक्ति के आसपास वाले इस संभावित खतरे के प्रति सचेत हो जाते हैं. यानी कि यह तरीका भाषा की ईजाद के पहले सुरक्षा उपायों के तौर पर अपनाया जाता था. आह-ऊह जैसी आवाजें सबसे आसानी से और जरूरत पड़ने पर पर्याप्त तेजी से निकाली जा सकती हैं, इसलिए ये ध्वनियां सावधान करने के संकेत की तरह इस्तेमााल की गईं जो धीरे-धीरे मानव स्वभाव का हिस्सा बन गईं. और यही वजह है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ये ध्वनियां लगभग एक जैसी हैं.
ऐसा ही कुछ नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में हुई एक रिसर्चकहती है. न्यूरोलॉजिस्ट बताते हैं कि शरीर में आवाज और दर्द के संकेतों को मस्तिष्क तक पहुंचाने में एक ही तरह की तंत्रिकाएं काम करती हैं. मुंह से किसी भी तरह की आवाज निकालना आपके दिमाग तक दर्द से जुड़े सिग्नल्स को पहुंचने से रोकता है या किसी भी तरह की असहज अनुभूति से आपका ध्यान हटाता है. इस स्थिति में आप सबसे आसान स्वर निकालते हैं जो आउच या आआआ… जैसा ही कोई शब्द हो सकता है.