विपक्ष के कमजोर होने का फायदा उठा रही सरकार- मनप्रीत मन्ना

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    होशियारपुर, जनगाथा टाइम्स: (सिमरन)

    भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं। यहाँ लोगों की वोटों के साथ सरकारें चुनें जातीं हैं और विपक्ष भी बनता हैं। सरकार का काम जनता के लिए भलाई स्कीमें बना कर और पार्टी की नीतियों व किये वायदों को पूरा करना होता हैं जबकि विपक्ष का काम सरकार के अच्छे कार्यो में साथ देना और जनता के लिए सरकार को कुछ गलत कदम उठाने से रोकना होता हैं। इस समय पर भारत में सरकार और विपक्ष अपने अपने कार्यो को भूल कर अपने आप को सही साबित करने को ले कर अपने रास्ते से भटकतीं हुई दिखाई दे रही हैं। इस पर विचार करने की जरूरत हैं कि यह क्यों और किन कारणों के चलते हो रहा हैं। नोटबंदी, जी.एस.टी. और किसान बिल पूरी तरह केंद्र की धक्केशाही लगातार दूसरी बार सत्ता में देश के प्रधानमंत्री नरिंदर मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। अपने लगभग छह सालों के कार्यकाल दौरान केंद्र सरकार अपने वायदों से उलट लोगों को सब्जबाग दिखा कर कुछ ऐसे फैसले किये जिन को केंद्र सरकार ने जनता को विश्वास दिलाया था कि इतना फैसलों का जनता को फायदा मिलेगा परंतु हुआ कुछ भी नहीं बल्कि जनता की परेशानियों में बढ़ौतरी ही हुई।

    इन फैसलों में पहला फैसला नोटबंदी का कहा जा सकता हैं। जब देश के प्रधानमंत्री ने एक ही दम ही नोटबन्दी का फैसला सुना कर जनता को यह स्वप्न दिखाया कि इस फैसले का जनता को लाभ मिलेगा और नकली नोटों के कारोबार पर कहीं न कहीं प्रभाव पड़ेगा, जनता को क्या मिला कुछ नहीं। नकली नोट मार्किट में से क्या बंद होने थे उस के बाद तो बैंकों के ए.टी.एमज में से भी नकली नोट निकलने शुरू हो गए, जहाँ पहले लोगों से हजारों की संख्या में नकली नोट पकड़े जाते थे अब वह संख्या बढ़ कर लाखों के होनी शुरू हो गई। जिसकी एक उदाहरण लगभग 2महीने पहले होशियारपुर में पकड़ा गया एक नकली नोटों का गिरोह था, जिसने लाखों रुपए के नकली नोट मार्किट में चला दिए थे और लाखों रुपए की नकली करंसी उन के पास से बरामद भी हुई।

    इस दौरान कई लोगों की तरफ से की गई आत्महत्याएं भी कहीं न कहीं नोटबन्दी के फैसले को गलत ठहराने के लिए काफी थे। दूसरा फैसला केंद्र सरकार का जी.एस.टी. को ले कर था, जनता को कहा गया कि आप को मिलने वाली वस्तुओं पर एक बार ही टैकस लगेगा जिस के साथ चीजों की कीमतों में कमी आयेगी, परंतु कीमतों में कमी आने की बजाय इस समय पर महँगाई अपने शिखर को छू रही हैं। तीसरा फैसला जो कि किसानों के बिल, जिसका सख्त विरोध होने के बावजूद भी केंद्र सरकार टस से मस न होते हुए अपने फैसले पर अड़ी हुई हैं कि जो हमने फैसला किया वह बिल्कुल सही हैं। अलग-अलग राज्यों में मिली जीत के बाद तो केंद्र सरकार बिल्कुल ही धक्केशाही पर उत्तर आई कि फैसले को ले कर किसानों की बैठकों में भी कोई हल नहीं हुआ और सरकार अपने फैसले पर पूरी तरह के साथ कायम हैं। सरकार तो इस समय पर इतनी धक्केशाही पर उतारू हैं कि वह इस मामले को राजनैतिक बताने से भी गुरेज नहीं कर रही। महंगाई पर कुछ करना तो दूर की बात कुछ बोलने को तैयार नहीं केंद्र सरकार इस के बाद बात की जाये महँगाई की तो महँगाई इस समय पर काफी तेजी के साथ आगे से आगे बढ़ रही हैं। आए दिन चीजों की कीमतें इस तरह के साथ बढ़ रही हैं जिस तरह 100 मीटर की दौड़ लगी हुई हो और महँगाई बहुत ही तेजी के साथ सब से पीछे छोड़ती हुई पहले स्थान पर आती हुई दिखाई दे रही हैं।

    सरकार की नीतियां तो कहीं समीप भी लगती नहीं दिखाई दे रही। सरकार महँगाई पर कंट्रोल करना तो दूर की बात महँगाई पर बात करने से भी गुरेज करती हुई दिखाई दे रही हैं। उन के मंत्री और भाजपा के वर्कर इस बात को मानने को ही तैयार नहीं कि महँगाई हैं। वह तो यह कह रहे हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता हैं परंतु यहाँ यह समझ नहीं आ रही जनता को महँगाई के साथ मिल क्या रहा हैं वह तो अपना सब कुछ खोती हुई दिखाई दे रही हैं। पैट्रोलियम पदार्थों की कीमतें इतनी अधिक बढ़ी हैं कि कच्चे तेल की कीमतों घटने पर भी पैट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को ले कर सरकार कोई कदम उठाने के लिए तैयार नहीं हैं। कांग्रेस, आप,बसपा और अन्य विपक्ष की पार्टियों की अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग सरकार की धक्केशाही और गलत फैसलों पर फिर न विचार करने के पीछे एक सब से बड़ा और अहम कारण कांग्रेस, आप, बसपा और ओर विपक्षी पार्टियों की अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग माना जा सकता हैं, क्योंकि जब सरकार कोई गलत फैसला या लोग विरोधी फैसला लेती हैं तो उस समय पर विपक्ष का काम होता हैं कि उसका विरोध करे। परंतु विरोधी पक्ष विरोध करने में कहीं न कहीं नाकामयाब साबित हुई हैं।

    नोटबंदी, जी.एस.टी., महँगाई, किसानों के विरोधी बिलों को ले कर अपने अपने तरीको साथ विरोध किया और कुछ समय बाद चुप कर गए। अपनी अपनी पार्टी को राजनीतिक तौर पर मजबूत करने की ओर कदमों की तरफ ही ध्यान दिया गया न कि लोगों के साथ ले जाए होने की ओर काम किया गया, हालाँकि यदि विरोधी पक्ष एकजुट हो कर फैसलों के खिलाफ खड़ी होती तो सरकार कहीं न कहीं उन फैसलों पर विचार करने के लिए मजबूर होती। सरकार क्यों फैसलों के बारे विचार करे उसको पता हैं कि विपक्ष इस समय पर बहुत ही कमजोर हैं और अपनी होंद को कायम रखने के लिए कहीं न कहीं जूझ रही हैं। इस बात का सरकार नाजायज फायदा उठा रही हैं। अब भी यदि विपक्ष एकजूट न हुए तो आने वाले समय में सरकार धक्केशाही और अपनी मनमर्जी करती रहेगी, जिसका नुक्सान विपक्ष को तो क्या होना हैं परंतु जनता को जरूर होता रहेगा। इस समय पर समय की यही माँग हैं कि विरोधी पक्ष सरकार के फैसलों के खिलाफ इकठ्ठा हो कर एेसी रणनीति तैयार करे जिस के साथ सरकार सोचने के लिए मजबूर हो जाये।

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