16 अक्टूबर विश्व स्पाइन दिवस के रूप में पूरे विश्व भर में रीड की हड्डी के रोगों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। रीढ़ की हड्डी संबंधी विकार विकलांगता के प्रमुख कारणों में से हैं। विश्व रीढ़ दिवस रीढ़ की हड्डी संबंधी विकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है। इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इस मौके पर #GetSpineActive के संदेश के साथ स्वयं की अच्छी देखभाल करके रीढ़ के दर्द और विकलांगता को रोकने के लिए सभी उम्र के लोगों को सूचित, शिक्षित और प्रेरित करना रखा गया है।
कैसे होती है स्पाइन की बीमारी
कम्प्रेसिव मायलोपैथी नामक बीमारी रीढ़ (स्पाइन) की हड्डियों को संकुचित कर उन्हें कमजोर कर देती है।
कम्प्रेसिव मायलोपैथी नामक बीमारी आमतौर पर पचास साल की उम्र के बाद शुरू होती है परंतु कई कारण ऐसे भी हैं जिनकी वजह से यह कम उम्र में भी परेशानी का कारण बन सकती है। कमर से लेकर सिर तक जाने वाली रीढ़ की हड्डी के दर्द को ही स्पॉन्डिलाइटिस कहते हैं। यह ऐसा दर्द है जो कभी नीचे से ऊपर और कभी ऊपर से नीचे की ओर बढ़ता है।
ये होते हैं कारण
सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रीढ़ से संबंधित समस्याओं के कारण जब स्पाइनल कैनाल सिकुड़ जाता है, तब स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव अधिक बढ़ जाता है। इसके अलावा इस बीमारी के अन्य कई कारण हैं जैसे रूमैटिक गठिया के कारण गर्दन के जोड़ों को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे गंभीर जकड़न और दर्द पैदा हो सकता है। रूमैटिक गठिया आमतौर पर गर्दन के ऊपरी भाग में होता है।
स्पाइनल टीबी,स्पाइनल ट्यूमर, स्पाइनल संक्रमण भी इस रोग के प्रमुख कारण हैं।
कई बार खेलकूद, डाइविंग या किसी दुर्घटना के कारण रीढ़ की हड्डी के बीच स्थित डिस्क (जो हड्डियों के शॉक एब्जॉर्वर के रूप में कार्य करती है) अपने स्थान से हटकर स्पाइनल कैनाल की ओर बढ़ जाती है, तब भी संकुचन की स्थिति बन जाती है। इस वजह से भी समस्या होती है।
बिना ऑपरेशन के उपचार संभव
इस बीमारी का बिना आपरेशन के भी इलाज संभव है। जब ये रोग शुरू होता है तो दर्द और सूजन कम करने वाली दवाओं और गैर-ऑपरेशन तकनीकों से इलाज किया जाता है। गंभीर दर्द का भी कॉर्टिकोस्टेरॉयड से इलाज किया जा सकता है, जो पीठ के निचले हिस्से में इंजेक्ट की जाती है।
रीढ़ की हड्डी को मजबूती और स्थिरता देने के लिए फिजियोथेरेपी की जाती है।
इसके अलावा भी कई ऐसी सर्जिकल तकनीकें हैं जिनका इस रोग के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है।
बीमारी का कैसे चलेगा पता
इस बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर एमआरआई का सहारा लेते हैं। इस जांच के द्वारा रीढ़ की हड्डी में संकुचन और इसके कारण स्पाइनल कॉर्ड पर पड़ने वाले दबाव की गंभीरता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसके अलावा कई बार रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर होने पर कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन, एक्स-रे आदि से भी जांच की जा सकती है।
सर्जिकल उपचार
कम्प्रेसिव मायलोपैथी की समस्या के स्थायी इलाज के लिए प्रभावित स्पाइन की वर्टिब्रा की डिकम्प्रेसिव लैमिनेक्टॅमी (एक तरह की सर्जरी) की जाती है ताकि स्पाइनल कैनाल में तंत्रिकाओं के लिए ज्यादा जगह बन सके और तंत्रिकाओं पर से दबाव दूर हो सके। यदि डिस्क हर्नियेटेड या बाहर की ओर निकली हुई होती हैं तो स्पाइनल कैनाल में जगह बढ़ाने के लिए उन्हें भी हटाया जा सकता है, जिसे डिस्केक्टॅमी कहते हैं। कभी-कभी उस जगह को भी चौड़ा करने की जरूरत पड़ती है, जहां तंत्रिकाएं मूल स्पाइनल कैनाल से बाहर निकलती हैं। इस स्थान को फोरामेन कहते हैं।
ये होते हैं लक्षण
– लिखने, बटन लगाने और भोजन करने में समस्या
– गंभीर मामलों में मल-मूत्र संबंधी समस्याएं उत्पन्न होना
– चलने में कठिनाई यानी शरीर को संतुलित रखने में परेशानी
– कमजोरी के कारण वस्तुओं को उठाने या छोड़ने में परेशानी
– सुन्नपन या झुनझुनी का अहसास होना
– गर्दन, पीठ व कमर में दर्द और जकड़न
ऐसे कर सकते हैं बचाव
– कंप्यूटर पर अधिक देर तक काम करने वालों को कम्प्यूटर का मॉनीटर सीधा रखना चाहिए।
– कुर्सी की बैक पर अपनी पीठ सटा कर रखना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल पर उठते रहना चाहिए।
– फिजियथेरेपी द्वारा गर्दन का ट्रैक्शन व गर्दन के व्यायाम से आराम मिल सकता है।
– व्यायाम इस रोग से बचाव के लिए आवश्यक है।
– देर तक गाड़ी चलाने की स्थिति में पीठ को सहारा देने के लिए तकिया लगाएं।
आप सब की स्पाइन एक्टिव तथा फिट रहे यही दुआ के साथ….
अरविंद वीर सिंह गिल
फिजियोथैरेपिस्ट
ज्वाइंट केयर फिजियो थेरेपी सेन्टर
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