महाराष्ट्र के 53वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में भेदभाव की दीवारें गिराकर प्रेम के पुल बाँधने का माता सुदीक्षा ने किया आह्वान

    0
    132

    होशियारपुर (जनगाथा टाइम्स ) मानवीय मनों मे खड़ी हुई भेदभाव की दीवारें गिराकर प्रेम का पुल बनाने का आह्वान, दूसरों का मन दुखाने की बजाय हमें दूसरों के आंसू पोछने चाहिए। संसार में मानव को प्रेम की आवश्यकता हैं, घृणा की नहीं। मानवता के नाम संदेश देते हुए सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने महाराष्ट्र के तीन दिवसीय 53वें वार्षिक निरंकारी संत समागम विधिवत उदघाटन किया। इस संत समागम में भाग लेने हेतु महाराष्ट्र के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पधारे हैं। आस-पास के राज्यों एवं देश के अन्य हिस्सों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु पधारे हैं। इसके अलावा विदेशों से भी सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु इस समागम में पधारकर दूर देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि भिन्न-भिन्न संस्कृति, भाषा, वेशभूषा होने के बावजूद प्रत्येक इन्सान के अंदर एक परमात्मा का अंश समान रुप से निवास करता है। ईश्वर की अंश इस आत्मा को जानने के लिए इसके मूल परमात्मा को जानने की आवश्यकता है । परमात्मा को जानने के बाद ही भक्ति आरंभ होती है और उसके बाद किया हुआ हर कर्म भक्ति बन जाता है। सत्य ज्ञान पर आधारित जीवन सुंदर बन जाता है । हम यथार्थ में मानव बन जाते हैं। केवल तन से ही नही बल्कि कर्म से मानव बनने की जरुरत है। इसलिए यह ज्ञान का प्रकाश हर मानव तक पहुँचाने की जरुरत है। इससे पहले समागम स्थल पर प्रवेश से पहले लगभग डेढ कि.मी.लम्बी रंगारंग शोभा यात्रा द्वारा सद्गुरु माता जी का स्वागत किया गया । यह शोभा यात्रा धर्मपूर पेठ राजमार्ग, म्हसरुल-दिंडोरी रोड पर आयोजित की गई । यह शोभा यात्रा एअरफोर्स रोड होती हुई समागम स्थल पर सम्पन्न हुई । सद्गुरु माता जी म्हसरुल-दिंडोरी रोड पर स्थित एक फूलों से सुसज्जित वाहन पर विराजमान थी । उनके सामने से हजारों की संख्या में श्रद्धालु उनका आशीर्वाद लेते हुए गुजर रहे थें । शोभा यात्रा की खासियत यह थी कि यह महाराष्ट्र स्थित मिशन के 15 क्षेत्रों के पारंपारिक वेशभूषा एवं संस्कृति का सकारात्मक मिश्रण प्रस्तुत कर रही था। इन क्षेत्रों की वेशभूषा व रंग इस प्रकार थें – नाशिक-गुलाबी, सोलापूर-सफेद, पूणा-बैंगणी, सातारा-संत्री, डोंबिवली- हलका हरा, कोल्हापूर-गुलाबी, औरंगाबाद, लाल, धुले सुनहरी पीला, मुंबई-आसमानी-नीला, अहमदनगर-गुलाबी, नागपूर-लाल, वारसा-बैंगणी, चिपलून-सुनहरा, रायगड-हरा। इस शोभा यात्रा में सौ महिलायें साडियों में और सौ पुरुष अपने अपने क्षेत्र के अनुसार भिन्न भिन्न रंगों की पगडियाँ बांधे हुए चल रहे थे। शोभा यात्रा में महाराष्ट्र की भिन्न-भिन्न पारंपरिक कलाओं को प्रस्तुत किया जा रहा था जिसमें , नाशिक ढोल, आदिवासी तारपा, लेझिम, महाराष्ट्र की लोकधारा लेझिम, लेझिम बॅन्ड, बॅन्ड हलगी, दिंडी, मंगला गौर, पवारा आदिवासी, कोली, पेशवाई संस्कृति, ढोल-ताशा, पौड, बंजारा, सिंधी संस्कृति, भांगड़ा, आदिवासी रेला आदि लोकनृत्य एवं मानव मात्र की उन्नति को दर्शाती हुई नाटिकायें भी शामिल थीं। अन्य राज्यों जैसे गुजरात एवं गोवा आदि से भी श्रद्धालु अपने अपने पारंपारिक वेशभूषा में शोभा यात्रा का हिस्सा बने। शोभा यात्रा के अंतिम पड़ाव में सद्गुरु माता जी फूलों से सुसज्जित वाहन में शोभा यात्रा में शामिल हो गए । समागम स्थल के मुख्य द्वार पर पहुँच कर सद्गुरु माता जी ने सत्य, प्रेम एवं एकत्व के प्रतीक स्वरुप रंगबिरंगे गुब्बारे छोड़े। उसके उपरान्त समागम कमेटी के सदस्यों, मिशन के केन्द्रीय पदाधिकारियों, मिशन के अन्य गणमान्य सदस्यों एवं साध संगत द्वारा सद्गुरु माता जी की मुख्य मंच तक अगुवानी की गई।

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here