आज ही के दिन 223 साल पहले 27 दिसंबर 1797 को आगरा में मिर्ज़ा ग़ालिब की पैदाइश हुई। मिर्ज़ा ग़ालिब मुग़ल दरबार मे शाही उस्ताद थे। उन्हें शहज़ादा फ़ख़रुद्दीन मिर्ज़ा की तरबियत के लिए मुक़र्रर किया गया था।
लेकिन दुनिया मे उनकी पहचान मुग़ल दरबार के शाही मुलाज़िम की तरह नही बल्कि एक महान शायर के रूप में है। मिर्ज़ा ग़ालिब ने ज़्यादातर शेर और ग़ज़ले इश्क़ और समाज के ताने बाने के इर्द गिर्द लिखा लेकिन हुक़ूमत के खिलाफ़ ज़्यादा नही लिखा, चाहे मुग़ल दरबार मे हो या अंग्रेजों के यहां पेंशन पर।
लेकिन उनकी लिखी शायरी और ग़ज़लों में जितनी गहराई थी उस तह तक पहुच पाना आज के शायरों के बस की बात नही। अपनी ज़िंदगी मे हुए गुनाह को वो खुले आम क़ुबूल करते थे।
क़ाबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुम को मगर नहीं आती
~मिर्ज़ा ग़ालिब