महिला U-17 वर्ल्ड कप की मेजबानी गई, अगले साल AFC एशियन कप, बैन के बाद भारतीय फुटबॉल पर क्या फर्क पड़ेगा

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नई दिल्ली: क्या इससे शर्मनाक भी कुछ हो सकता है? यूपीए सरकार में मंत्री रहे प्रफुल्ल पटेल 13 साल तक भारतीय फुटबॉल संघ के अध्यक्ष थे। देश का स्पोर्ट्स कोड कहता है कि कोई भी व्यक्ति 3 बार से ज्यादा अध्यक्ष नहीं रह सकता। मजबूरन उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। मगर पद से हटते ही प्रफुल्ल पटेल ने गंदी राजनीति शुरू कर दी। राज्य संघों के साथ मिलकर चुनाव नहीं होने दिया। इधर पटेल चुनाव में अड़ंगा लगाते रहे। दूसरी ओर FIFA में अपनी जुगाड़ से AIFF को बैन करने की कोशिशों में भी लगे रहे। फीफा से लगातार धमकी दिलवाते थे। आखिरकार सोमवार देर रात रात फीफा ने इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन को बैन कर ही दिया।

दरअसल, चुनाव न होने के चलते भारतीय फुटबॉल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स (CoA) चला रही है। मगर नियम कहते हैं कि किसी भी देश में अगर फुटबॉल को चलाने वाली प्रॉपर संस्था या ऑर्गनाइजिंग बॉडी नहीं हो तो उसकी मान्यता खतरे में पड़ सकती है। इसका मतलब ये कि अब अक्टूबर में होने वाले महिला अंडर-17 विश्व कप की मेजबानी भारत से छीन गई। भारत पर बैन का मतलब, किसी इंटरनेशनल टूर्नामेंट में हम नहीं खेल पाएंगे। कोई विदेशी खिलाड़ी ISL जैसे घरेलू टूर्नामेंट में खेलने अपने देश नहीं आ पाएगा। हालांकि 28 अगस्त को चुनाव होने हैं, देखते हैं आगे क्या होता है।

भारतीय फुटबॉल पर बैन का क्या असर होगा?
इसी साल अक्टूबर में भारत को फुटबॉल में अंडर-17 महिला विश्व कप की मेजबानी करना था। अब वह खतरे में पड़ चुका है। भारत पर बैन का मतलब, देश में फुटबॉल पर पूरी तरह रोक। अगले साल AFC एशियन कप भी होना है। बैन लगने के बाद अब भारतीय टीम किसी टूर्नामेंट में शिरकत नहीं कर पाएगी। कोई विदेशी खिलाड़ी ISL जैसे घरेलू टूर्नामेंट में खेलने भारत नहीं आ पाएगा।

भारत का सर्वोच्च न्यायालय प्रफुल्ल पटेल और उनकी कार्यकारी समिति को उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त करता है और एआईएफएफ के कामकाज की निगरानी के लिए प्रशासकों की एक समिति (सीओए) की नियुक्ति करता है। पटेल ने दिसंबर 2020 में एआईएफएफ अध्यक्ष के रूप में अपने तीन कार्यकाल और 12 साल पूरे किए थे, जो खेल संहिता के तहत एक राष्ट्रीय खेल महासंघ के प्रमुख को अधिकतम अनुमति थी, लेकिन इसके संविधान के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले के कारण चुनाव नहीं हो सके।

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