सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, …तो ऐसा करने वाला कर्मचारी होगा पैंशन का हकदार

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शिमला : नियमित सेवा के साथ अगर दिहाड़ीदार सेवा का 20 फीसदी नियमित सेवा अवधि के बराबर लाभ देते हुए 8 वर्ष ही पूरे होते हैं तो भी सरकारी कर्मी पैंशन लेने का हक रखेगा। इसे न्यूनतम पैंशन के लिए 10 साल के बराबर मान लिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने सुंदर सिंह नामक मामले में पारित अपने फैसले की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सुंदर सिंह नामक मामले में यह व्यवस्था दी है कि 5 वर्ष की दिहाड़ीदार सेवा को 1 वर्ष की नियमित सेवा के बराबर माना जाएगा। 10 वर्ष की दिहाड़ीदार सेवा को 2 वर्ष की नियमित सेवा के बराबर माना जाएगा ताकि कर्मी कुछ वर्षों की नियमित सेवा की कमी के चलते पैंशन के लाभ से वंचित न हो।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुंदर सिंह नामक इस फैसले को लेकर प्रदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ व खंडपीठों के फैसलों में विरोधाभास उत्पन्न हो गया था, जिस कारण मामले को 3 जजों की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा गया था। एकल पीठ व एक खंडपीठ का यह मत था कि अगर नियमित सेवा के साथ दिहाड़ीदार सेवा का लाभ देते हुए 8 वर्ष की सेवा का कार्यकाल पूरा हो जाता है तो उस स्थिति में सरकारी कर्मी पैंशन लेने का हक रखेगा। सुंदर सिंह के फैसले में 8 वर्ष की सेवा को 10 वर्ष आंकने का भी जिक्र किया गया है जबकि अन्य खंडपीठ का यह मत था कि नियमित सेवा के साथ दिहाड़ीदार सेवा का लाभ देते हुए अगर 10 वर्ष की सेवा का कार्यकाल पूरा होता है, तभी सरकारी कर्मी नियमित पैंशन लेने का हक रखेगा।

हाईकोर्ट के 3 जजों की पीठ के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द करते हुए प्रार्थी बालो देवी को उसके पति द्वारा राज्य सरकार को दी गईं सेवाओं की एवज में पैंशन देने के आदेश जारी किए। पैंशन का एरियर 8 सप्ताह के भीतर दिए जाने के आदेश जारी किए गए हैं। मामले से जुड़े तथ्यों के अनुसार प्रार्थी का पति जो सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग में चतुर्थ श्रेणी दिहाड़ीदार कार्यरत था, उसकी दिहाड़ीदार सेवाओं को 10 वर्ष की सेवा पूरी करने के पश्चात 1 जनवरी, 2000 से नियमित किया गया था। 6 साल 2 महीने की नियमित सेवा पूरी करने के पश्चात वह सेवानिवृत्त हो गया। 6 साल 2 महीने की नियमित सेवा के चलते उसे विभाग द्वारा पैंशन देने से मना किया गया, जिस कारण उसने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल की और अंतत: उसे सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिली।

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