भारत का कर्ज-GDP अनुपात 84% रहने का अनुमान: मुद्रा कोष

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वाशिंगटनः भारत का कर्ज सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में इस साल 84 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में अधिक है। हालांकि, इसके साथ ही अच्छी बात यह है कि भारत का कर्ज ऐसा है, जिसको संभालने को लेकर कोई बड़ी समस्या नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के उप-निदेशक (राजकोषीय मामले) पॉउलो माउरो ने कहा कि भारत के लिए जरूरी है कि उसके पास राजकोषीय मोर्चे पर मध्यम अवधि का लक्ष्य बिल्कुल साफ हो। राजकोषीय स्थिति को स्थिर बनाए रखने के लिए उठाए गए कदमों को लेकर कई चीजें स्पष्ट नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘लोगों और निवेशकों को आश्वस्त करना बहुत महत्वपूर्ण होगा कि चीजें नियंत्रण में है। आने वाले समय में स्थिति बिगड़ेगी नहीं।” माउरो ने कहा, ‘‘कर्ज अनुपात के संदर्भ में हमारा अनुमान है कि भारत का कर्ज-जीडीपी अनुपात करीब 84 प्रतिशत रहेगा। यह कई उभरते देशों के मुकाबले ज्यादा है।” उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित रूप दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश होने और एक बहुत बड़ी, उभरती हुई अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत की बहुत सी खास विशेषताएं हैं।”

माउरो ने कहा, ‘‘अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अन्य चीजें जो एक तरह से विशेष या विशिष्ट हैं, वह यह कि भारत का ज्यादातर ऋण घरेलू मुद्रा में है और एक बड़ा निवेशक आधार है। ये सब चीजें अच्छी हैं और इससे कर्ज संभालने के स्तर कोई बड़ी समस्या नहीं है।” उन्होंने कहा कि हर साल कर्ज लेने की आवश्यकता बहुत महत्वपूर्ण है। यह सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 15 प्रतिशत है। माउरो ने कहा, ‘‘कुल मिलाकर, कर्ज को लेकर स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है। इसको देखते हुए राजकोषीय घाटे को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है।”। उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटा अभी सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत है। यह ज्यादातर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले ज्यादा है। कुल राजकोषीय घाटे में से करीब 6.5 प्रतिशत केंद्र सरकार का जबकि शेष राज्यों का है।

आईएमएफ के अधिकारी ने कहा, ‘‘वैश्विक स्थिति और विभिन्न देशों में हालात को देखते हुए, मुद्रास्फीति थोड़ी ऊंची है…इन सभी चीजों को देखते हुए घाटा कम करना और समय के साथ कर्ज को धीरे-धीरे कम करना जरूरी जान पड़ता है।” उन्होंने कहा कि भारत के पक्ष में एक और अच्छी चीज आर्थिक वृद्धि दर का ऊंचा बने रहना है। माउरो ने कहा, ‘‘यह अनुपात को स्थिर स्तर पर बनाए रखने में मदद करता है। यदि वृद्धि दर तेज रही, तो इसे संभवत: नीचे भी लाया जा सकता है लेकिन राजकोषीय घाटे में कमी के बिना महंगाई को काबू में रखना मुश्किल होगा और दूसरी तरफ कर्ज के अनुपात को कम करना भी कठिन होगा यानी घाटे में कमी लाना जरूरी है।”

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