जर्मनी ने पाकिस्तान की शय पर अलापा कश्मीर राग, भारत से मिला करारा जवाब

0
173

बर्लिन: पाकिस्तान की शय पर जर्मनी ने भी अब कश्मीर राग अलापना शुरू कर दिया है। जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक द्वार कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की भूमिका की मांग करने पर भारत ने इसका करारा जवाब दिया है। चंदा मांगने जर्मन पहुंचे पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के साथ एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में बेयरबॉक ने कहा कि उनका मानना है कि संघर्षों को सुलझाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम एक शांतिपूर्ण दुनिया में रहें, दुनिया के हर देश की भूमिका और जिम्मेदारी है। इस दौरान बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन का वही घिसा-पिटा दावा दोहराया। उन्होंने भारत पर कश्मीरी नागरिकों पर अत्याचार करने और सेना के दम पर आवाज दबाने का झूठा आरोप भी लगाया।

बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार और कश्मीरी लोगों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए जम्मू कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के बिना दक्षिण एशिया के अंदर शांति संभव नहीं है। उन्होंने भारत पर कश्मीर में अत्याचार करने और मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया। बिलावल भुट्टो ने 10 मिलियन यूरो का चंदा मिलने के बाद जर्मनी की विदेश मंत्री को पाकिस्तान आने का न्योता भी दिया। बिलावल ने कहा कि पाकिस्तान और जर्मनी आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। इस दौरान जर्मन विदेश मंत्री ने पाकिस्तान में निवेश करने की बात भी की।

जर्मन विदेश मंत्री के कश्मीर पर बयान के बाद भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा कि जम्मू कश्मीर दशकों से आतंकवाद का खामियाजा भुगत रहा है और यह अब तक जारी है। बागची ने कहा कि वैश्विक समुदाय के सभी गंभीर और कर्तव्यनिष्ठ सदस्यों की अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, विशेष रूप से सीमा पार प्रकृति के आतंकवाद को खत्म करने की भूमिका और जिम्मेदारी है। भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर ने दशकों से इस तरह के आतंकवाद का खामियाजा भुगता है। यह अब तक जारी है।

बागची ने कहा कि विदेशी नागरिक वहां और भारत के अन्य हिस्सों में भी इससे पीड़ित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और एफएटीएफ अभी भी 26/11 के भीषण हमलों में शामिल पाकिस्तानी आतंकवादियों के पीछे लगे हैं। बागची ने कहा कि कुछ देश ऐसे खतरों को स्वार्थ या उदासीनता के कारण स्वीकार नहीं करते तथा शांति के उद्देश्य को कमजोर करते हैं । ऐसा करके वे आतंकवाद पीड़ितों के साथ भी गंभीर अन्याय करते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here