दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से करवाए गए धार्मिक कार्यक्रम में प्रवचन करते हुए साध्वी आणीमा भारती जी ने जीवन में गुरू की महानता के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यदि किसी देश के किसी व्यक्ति की आँखों पर पट्रटी बांध कर कोई उसे निर्जन स्थान पर छोड़ दे तो विचार करो कि उस व्यक्ति की क्या हालत होगी वह निसंदेह सभी दिशाओं में चिल्लाता और भटकता ही फिरेगा। परन्तु इस स्थिती में यदि कोई पुरूष उसके नेन्नबंध खोल दे और उसे उसके देश की ओर उन्मुख कर दे तो वह शीध्र और निश्चय ही स्वदेश पहुँच जाएगा। ठीक इसी प्रकार प्रत्येक जीव अज्ञानता की पटटी बांधे हुए इस अंजान मायावी लोक में भटक रहा है। व्याकुल एवं दयनीय दशा में ऐसे में कोई संत गुरू ही उसके ये अज्ञानता के बंधन खोल सकते है। आगे साध्वी जी ने कहा कि आज हम जिन अवतारों को अपना इष्ट मानकर इनकी पूजा करते है पर इनके आचरण से शिक्षा नही लेते। इन तीनों लोगों के नायकों ने गुरू संत का वरूण कर मानव जाति को संदेश दिया।
उदाहरण भगवान राम गुरू वशिष्ठ जी की शरणगत हुए।श्री कृष्ण ने दुरवासा ऋषि जी से ज्ञान दीक्षा प्राप्त की। न केवल दीक्षा प्राप्त की, ब्लिक उतम कोटि की भक्ति भी की।
अंत में साध्वी जी ने कहा कि आज के परिवेश में मनुष्य गुरू के नाम से डरता है क्योंकि बहुत से लोग संत होने का स्वांग रच रहे है।ऐसे में श्रधाए लुटी जा रही है। ऐसे में हमें चाहिए के हम धर्म शास्न्नों के आधार पर संत की खोज करें। श्री कृष्ण भी यही उदघोष करते है तद्विद्धि प्रणि पातेन परि प्रश्नेन सेवया । उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तदर्शिन:। अर्जुन जा गुरू के समीप जाकर उनको साण्टांग प्रणाम तथा सेवा करें उनसे ज्ञान को प्राप्त करें। ये तत्वदशर्री ज्ञानी पुरूष तुझे ज्ञान का उपदेश करेंगें। भगवान कृष्ण अर्जुन के माध्यम से समस्त मानव जाति को सन्देश देना चाहते हैं कि यदि ईश्वर को प्राप्त करना है, तो तत्वदर्शी गुरू के सन्हिध्य मे जाओ , और ईश्वर दर्शन करने से तुम्हारी भक्ति की शुरूआत होंगी, क्योंकि आत्म दर्शन के बिना तुम्हारे सभी कर्म निरर्थक हैं।