होशियारपुर (जनगाथा टाइम्स ) : सत्संग एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा भक्ति में मन जुड़ता है, ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के बाद गलतियों से भरा मन अपनी गलतियों को बख्शाता है और दूसरों में भी एक निरंकार की ज्योति के दर्शन करता हुआ मनुष्य मानवी गुणों को धारण करके दूसरों प्रति अपनी गलत भावना को त्याग देता है। उक्त प्रवचन इटावा उत्तर प्रदेश में हुए एक विशाल संत समागत दौरान निरंकारी सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने किया। उन्होंने फरमाया जब ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तो हमारा नाता कायम दायम हर तरफ विराजमान एक निरंकार प्रभु के साथ जुड़ जाता है, जिसके साथ हमारी मन की भावनाएं दूसरों प्रति दया में बदल जाती हैं। उन्होंने फरमाया हमारा चरित्र ऐसा होना चाहिए कि कर्मों से बयान हो। हमें कभी भी दूसरों प्रति हीन भावना नहीं रखनी चाहिए क्योंकि अभी जि़ंदगी की बेड़ी जो है वह दुनिया के इस समुद्र में है पता नहीं कौन से समय पर क्या हो जाये हमें जिस तरह निरंकार विशाल है , इस तरह के बनना चाहिए और हर एक का भला चाहते रहना चाहिए क्योंकि इसमें अपना ख़ुद का भी भला हो जाता है। उन्होंने फरमाया कि हमें किसी भी चीज अभिमान अहंकार नहीं करना चाहिए। हमेशा निरंकार प्रभु का शुकराना करते हुए अपने परिवार, समाज और दूसरी जिम्मेवारियों को निभाते हुए अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए और हमेशा इस संसार के अंदर एक कमल के फूल की तरह रहना चाहिए। अंत में उन्होंने फरमाया कि यह जीवन भक्ति के लिए ही मिला है। हमेशा ही जिस तरह का भी वक्त आ जाये हमें निरंकार के हुक्मों व भाने अंदर रहना चाहिए क्योंकि परमात्मा कभी भी किसी का बुरा और गलत नहीं करता।
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प्रवचन करते हुए निरंकारी सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज और उपस्थित संगत।